गुजरात (अन्हिलवाड़) के चालुक्य – भारत के समान्य ज्ञान की इस पोस्ट में हम गुजरात (अन्हिलवाड़) के चालुक्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी और नोट्स प्राप्त करेंगे ये पोस्ट आगामी Exam REET, RAS, NET, RPSC, SSC, india gk के दृस्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है
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गुजरात (अन्हिलवाड़) के चालुक्य
चालुक्य वंश ( गुजरात ) के संस्थापक मूलराज प्रथम (942 से 996) के ई) थे। इनकी राजधानी अन्हिलवाड़ थी भीम प्रथम (1022 से 1064 ई.) इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। इसके समय में महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मन्दिर पर 1025 ई. में आक्रमण किया भीम प्रथम ने कलचूरि शासक कर्ण के साथ मिलकर परमार भोज को परास्त किया एवं धारानगरी को लूटा।
भीम प्रथम के मंत्री विमलशाह ने विमलशाही (आदिनाथ) के मन्दिर का निर्माण 1031 ई. में देलवाड़ में करवाया।
कीर्तिधर इसका शिल्पकार था।
भीम के बाद उसके पुत्र कर्ण (1064 से 1094 ई.) ने त्रैलोक्य मल्ल की उपाधि धारण कर शासन किया।
जयसिंह सिद्धराज (1094 से 1153 ई.) :-
जयसिंह सिद्धराज महत्वपूर्ण शासक था।
उसके दरबार में जैन आचार्य हेमचन्द्र रहते थे
जिन्होंने कुमारपाल चरित (द्वयाश्रय महाकाव्य) नामक ग्रन्थ लिखा।
अष्टादससहस्री व त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र की रचना भी हेमचन्द्र ने की।
हेमचन्द्र ने लगभग साढ़े तीन करोड़ श्लोकों की रचना की।
सिद्धहेम व्याकरण ग्रन्थ की रचना हेमचन्द्र ने की थी।
जयसिंह सिद्धराज की माता मयणल्ल (मैनल) देवी ने उसकी संरक्षिका की भूमिका निभाई।
वैरोचन पराजय का रचयिता श्रीपाल जयसिंह के दरबार में था।
कुमारपाल की वडनगर प्रशस्ति का लेखक श्रीपाल था।
मालवा के परमार शासक यशोवर्मन पर विजय के उपलक्ष्य में जयसिंह ने अवन्ति नाथ की उपाधि धारण की जयसिंह शैव था तथा उसने सिद्धपुर में रूद्र महाकाल के मन्दिर का निर्माण कराया
जयसिंह ने 1113-14 ई. में सिंह संवत् प्रारम्भ किया।
मुस्लिम लेखक औफी के अनुसार जयसिंह सिद्धराज ने खम्भात में एक मस्जिद के जीर्णोद्धार के लिए अपने निजी कोष से एक लाख बलोत्र (स्वर्ण मुद्रा) का अनुदान किया था।
जयसिंह सिद्धराज ने सोमनाथ मन्दिर के यात्रियों पर लगने वाले तीर्थयात्रा कर को भी समाप्त कर दिया था।
जयसिंह ने चौहान नरेश अणोराज को हराया किन्तु बाद में अपनी पुत्री कांचन देवी का विवाह अर्णोराज से किया।
कुमारपाल (1153 से 1172 ई.) :-
कुमारपाल अन्य महत्वपूर्ण शासक था।
वह जैन था और सोमनाथ के मन्दिर का कुमारपाल द्वारा 1169 ई. में अन्तिम रूप से पुनर्निर्माण करवाया गया।
जयसिंह सूरि, जो कुमारपाल का कवि था, ने कुमारपालचरित (कुमारभूपाल चरित) लिखा।
कुमारपाल ने अपने राज्य में मंदिरा के उत्पादन व बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया तथा जुआ एवं वेश्यावृति पर रोक लगाई।
कुमारपाल ने जैन आचार्य हेमचन्द्र के प्रभाव में आकर अपना शैव धर्म छोड़कर जैन धर्म स्वीकार कर लिया।
हेमचन्द्र ने कुमार पाल को परमार्हत कहा है।
कुमारपाल ने पशुवध पर प्रतिबन्ध लगा दिया एवं कसाईयों को अपना व्यवसाय बन्द करने की एवज में तीन वर्ष की आय के बराबर धन क्षति पूर्ति में दिया।
अजयपाल (1172 से 1176 ई.):-
कुमारपाल के उत्तराधिकारी अजयपाल को जैन परम्पराओं में जैनियों के संत्रासक के रूप में वर्णित किया गया है।
उसने अपने राज्य में जैन साधुओं की हत्या करवा दी तथा कुमारपाल द्वारा निर्मित अनेक जैन मंदिरों को तुड़वा दिया तथा शैवों को राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त किया।
मूलराज द्वितीय (1176 से 1078 ई.) ने आबू के निकट (काशहद का मैदान) 1178 ई. में मुहम्मद गोरी को हराया।
मूलराज द्वितीय की संरक्षिका उनकी माता नाईकि देवी ने ही वास्तव में मुहम्मद गौरी के विरुद्ध 1178 ई. में आबू के युद्ध में सेना का संचालन किया।
चालुक्य वंश का अन्तिम महान् शासक भीम द्वितीय (1178 से 1238 ई.) था। 1197 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुजरात पर आक्रमण कर अन्हिलवाड़ को लूटा।
भीम द्वितीय के समय वास्तुपाल एवं तेजपाल ने 1231-32 ई. में देलवाड़ा में लूणवसहि (नेमिनाथ) मन्दिर का निर्माण करवाया।
इनका वास्तुकार शोभनदेव था।
इस मन्दिर को देवरानी जेठानी का मन्दिर भी कहा जाता है।
चालुक्यों के बाद बघेला शासकों ने गुजरात पर शासन किया।
वास्तुपाल व तेजपाल द्वारा निर्मित दिलवाड़ा का नेमिनाथ का जैन मन्दिर (आबू) वास्तव में बघेला शासक वीरधवल के समय बना बघेला प्रारम्भ में चालुक्यों के सामन्त थे।
भीम द्वितीय के समय बघेला सामन्त लवणप्रसाद एवं उसका पुत्र वीरधवल चालुक्य राज्य के वास्तविक शासक (Defacto ruler) बन गए थे।
उदयसुन्दरीकथा के लेखक सोढ़ल व प्रबन्ध चिन्तामणि के लेखक मेरूतुंग चालुक्य शासकों के समय थे।
चालुक्य शासकों द्वारा तीर्थ यात्रियों से कूट नामक कर लिया जाता था।
चालुक्य शासकों ने उमापति वरलब्ध की उपाधि धारण की जिससे यह प्रतीत होता है कि उनका राजधर्म शैव था।
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