Pala dynasty in hindi | पाल वंश का इतिहास – भारत के समान्य ज्ञान की इस पोस्ट में हम पाल वंश | Pala dynasty in hindi | पाल वंश का इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी और नोट्स प्राप्त करेंगे ये पोस्ट आगामी Exam REET, RAS, NET, RPSC, SSC, india gk के दृस्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है
पाल वंश
पाल वंश की स्थापना गोपाल ने (750 से 770 ई.) की धर्मपाल के खलीमपुर लेख के अनुसार बंगाल में व्याप्त अव्यवस्था (मत्स्य न्याय) को दूर करने के लिए प्रजा ने गोपाल को अपना राजा चुना। पाल वंश के शासक बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।
गोपाल ने बिहार में ओदन्तपुरी विहार का निर्माण करवाया था। कुछ विद्वान इसका श्रेय धर्मपाल को देते है।
धर्मपाल (770 से 810 ई.):-
गोपाल के पुत्र धर्मपाल ने पाल वंश को सफलता के नये आयाम दिये। गुजराती कवि सोढ़ल ने उदय सुंदरी कथा में धर्मपाल को उत्तरापथ स्वामी कहा है। धर्मपाल को प्रतिहार शासक वत्सराज तथा राष्ट्रकूट शासक ध्रुव प्रथम ने हराया।
धर्मपाल ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की तथा सोमपुरी राम (पहाड़पुरी, बंगाल) में मठों का निर्माण करवाया। उसकी सभा में हरिभद्र नामक बौद्ध विद्वान रहते थे।
- धर्मपाल की सभा में हरिभद्र ने ‘अष्टसहस्त्रिका प्रज्ञापारमिता‘ नामक बौद्ध ग्रन्थ की रचना की थी।
- इस ने कन्नौज पर अधिकार कर एक दरबार का आयोजन किया इसमें प्रतिहार नरेश वत्सराज ने भी भाग लिया।
- धर्मपाल ने विक्रमशील एवं परमेश्वर की उपाधि धारण की।
- धर्मपाल ने ‘निर्वाण नारायण’ की उपाधि ग्रहण की।
- इस ने ‘राजत्रयचाधिपति’ (तीन राजाओं का स्वामी/अश्वपति,गजपति, नरपति) की उपाधि धारण की।
- धर्मपाल के अलावा गोविन्दचन्द्र (गहढ़वाल शासक) व लक्ष्मीकर्ण (कलचुरि) ने भी राजत्रयाधिपति की उपाधि धारण की।
- धर्मपाल के लेखों में उसे ‘परमसौगत’ कहा जाता है।
देवपाल (810 से 850 ई.):-
धर्मपाल का पुत्र देवपाल इस वंश का सर्वाधिक प्रतापी शासक था।
नारायणपाल के बादल अभिलेख के अनुसार देवपाल ने उत्कल, हूणों,द्रविड़ों व गुर्जरों को पराजित किया।
अरब यात्री सुलेमान के 851 ई. के लेख के अनुसार पालों की सेना राष्ट्रकूटों व प्रतिहारों से अधिक शक्तिशाली थी।
देवपाल ने मलाया के शैलेन्द्रवंशी राजा बालपुत्र देव की प्रार्थना पर नालन्दा के बौद्ध विहार को पाँच गाँव दिए तथा वीरसेन नामक बौद्ध विद्वान को नालन्दा विहार में अध्यक्ष नियुक्त किया।
देवपाल ने गुर्जर प्रतिहार शासक रामभद्र एवं मिहिरभोज को परास्त किया था।
तारानाथ ने देवपाल को बौद्ध धर्म का पुनरूद्धारक तथा पुनर्स्थापिक कहा है।
दर्भपाणि व केदार मिश्र देवपाल के सुयोग्य मंत्री थे।
महिपाल प्रथम (980 से 1038 ई.) ने पाल वंश की शक्ति पुनः स्थापित की। इसे पाल वंश का दूसरा संस्थापक भी कहा जाता है।
राजेन्द्र चोल ने महिपाल पर आक्रमण कर पराजित किया। महिपाल ने दीपंकर श्रीज्ञान, जिसे अतिसा नाम से भी जाना जाता था, नामक बौद्ध भिक्षु के नेतृत्व में एक बौद्ध प्रचार मण्डल तिब्बत भेजा।
महिपाल प्रथम के बाद क्रमशः नयपाल (1038-1055 ई.), विग्रहपाल तृतीय (1055-1070 ई.), महिपाल द्वितीय (1070 1075 ई.) तथा सुरपाल द्वितीय (1075-1077 ई.) ने शासन किया।
रामपाल (1077 से 1130 ई.):-
रामपाल अन्तिम महत्वपूर्ण शासक था। रामपाल विग्रहपाल तृतीय का पुत्र था।
संध्याकरनन्दी द्वारा रचित ‘रामपाल चरित’ में इसका वर्णन है।
रामपाल चरित श्लेष शैली में लिखा गया है इसमें राम की कथा के साथ पाल शासक रामपाल की कथा है।
संध्याकार नन्दी ने स्वयं को कलिकाल वाल्मीकि (कलियुग का वाल्मीकि) कहा है एवं रामपाल को राम कहा है।
इसकी रचना रामपाल चरित में कैवतों (कृषक समुदाय) के नेता भीम (दिब्बोक के पुत्र) को पराजित करने का वर्णन है।
रामपाल ने गंगा नदी (प्रयाग) में डबकर अपनी प्राण दे दिये।
मदनपाल
मदनपाल पाल वंश का अन्तिम शासक था। पाल शासकों ने दीपंकर, अभयंकर, ज्ञानपाद, रत्नवज्र, संतरक्षित आदि बौद्ध विद्वानों को विक्रमशिला विश्वविद्यालय, जो धर्मपाल द्वारा स्थापित किया गया, में संरक्षण प्रदान किया। 1203 ई. में बख्तियार खिलजी के आक्रमण से नष्ट होने से पूर्व विक्रमशिला शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था।
अभिलेख में पाल शासकों को परमसौगत (बौद्ध) कहा गया है।
संभवतः पालों की राजधानी मुंगेर थी। सर्वप्रथम देवपाल ने मुंगेर राजधानी बनाई।
पाल शासकों के समय तान्त्रिक बौद्ध धर्म विकसित हुआ।
अरबयात्री सुलेमान ने पाल साम्राज्य को रूहमा (धर्मा) कहा है।
पाल राजाओं के राज्य काल में वज्रयान में मन्त्रपाठ के विरोध में पृथक तांत्रिक संप्रदाय बना जो सहजयान के नाम से विख्यात हुआ।
दायभाग का लेखक जीमूतवाहन (12वीं शती) भी पाल शासकों के दरबार में था।
चक्रपाणि दत्त 11वीं शताब्दी का बंगाल का प्रसिद्ध चिकित्साशास्त्री था। इन्होंने चरक संहिता पर आयुर्वेद दीपिका (चरक तत्व प्रदीपिका) तथा सुश्रुत संहिता पर भानुमति नामक टीकाएँ लिखी। चक्रपाणिदत्त ने चिकित्सा संग्रह (चक्रदत्ता) नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा, जिसमें विभिन्न रोगों के लक्षण तथा भस्म तैयार करने के नवीन तथ्यों की जानकारी मिलती है।
धीमान एवं वीतपाल 9वीं सदी के पालशैली के चित्रकार थे। पाल चित्रकला को मगध शैली भी कहा जाता है।
पाल वंश के समय बौद्ध विचारकों ने चर्यापदों की रचना की।
दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ पालों के व्यापारिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध थे।
पाल एवं प्रतिहार शासन में विषय से नीचे की इकाई पतला थी।
READ ALSO
- भारत में आये प्रमुख विदेशी यात्री
- प्राचीन भारत में प्रमुख संवत्
- भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ
- भारत की भौगोलिक संरचना एवं इतिहास पर प्रभाव
- इस्लाम धर्म का इतिहास
- संगम काल का इतिहास
- मगध साम्राज्य का उत्कर्ष
- सोलह महाजनपद
- भारतीय संस्कृति का विदेशों में प्रसार (वृहत्तर भारत)
- वर्धन वंश
- गुप्तोत्तर काल
- Bharat par Arab Aakraman
- तुर्क आक्रमण
- Sikh Dharm ke Guru
- भक्ति आंदोलन
- सूफी आन्दोलन
- मध्यकाल के प्रान्तीय राजवंश
- बहमनी साम्राज्य
- Sindhu Ghati Sabhyata
- Bhartiya Rashtriya Andolan
- Morya Samrajya in Hindi
- गुप्त साम्राज्य (Gupta Dynasty in Hindi)
- गुप्तकालीन प्रशासन
- गुप्त काल में अर्थव्यवस्था
- gupt kaal ka samajik jivan
- गुप्त काल में कला, साहित्य और विज्ञान
- राजपूतों की उत्पत्ति (Rajputo ki Utpatti)
- गुर्जर-प्रतिहार राजवंश
- गहड़वाल वंश
- चौहान वंश का इतिहास
- चन्देल वंश का इतिहास
- गुजरात (अन्हिलवाड़) के चालुक्य
- मालवा के परमार